कब तक दिल की ख़ैर मनाएं, कब तक राह दिखाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे, कब तक याद न आओगे
बीता दीद उम्मीद का मौसम, ख़ाक उड़ाती है आँखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल, कब बरखा बरसाओगे
अहद-ए-वफ़ा और तर्क-ए-मोहब्बत जो चाहे सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है, हम से क्या मनवाओगे
किसने वस्ल का सूरज देखा, किस पर हिज्र की रात ढली
गेसुओं वाले कौन थे, क्या थे, उनको क्या जतलाओगे
'फैज़' दिलों के बाग़ में है घर बसाना भी और लुट जाना भी
तुम उस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे
----- फैज़ अहमद फैज़
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