ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम
हम से न बोलो तुम इसे कहते हैं क्या भला
इन्साफ कीजे पूछते हैं आप ही से हम
क्या गुल खिलेगा देखिये है फ़स्ल-ए-गुल तो दूर
और सू-ए-दश्त भागते हैं कुछ अभी से हम
क्या दिल को ले गया कोई बेगाना आशना
क्यों अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम
------- मोमिन खान मोमिन
No comments:
Post a Comment