Jan 17, 2011

हाथ उठे हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं

हाथ उठे हैं मगर लब पे दुआ कोई नहीं
की इबादत भी वो जिस की जज़ा कोई नहीं

ये भी वक़्त आना था अब तो गोश हर आवाज़ है
और मेरे बर्बाद-ए-दिल में सदा कोई नहीं

आ के अब तस्लीम कर लें तू नहीं तो मैं सही
कौन मानेगा की हम में बेवफा कोई नहीं

वक़्त ने वो ख़ाक उडाई है के दिल के दश्त से
काफिले गुज़रे हैं फिर भी नक्श-ए-पा कोई नहीं

खुद को यूँ महसूर कर बैठा हूँ अपनी ज़ात में
मंजिलें चारों तरफ हैं रास्ता कोई नहीं

कैसे रास्तों से चले और किस जगह पहुंचे 'फ़राज़'
या हुजूम-ए-दोस्तां था साथ या कोई नहीं
                                                     - अहमद फ़राज़

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अहमद फ़राज़ (उर्दू : احمد فراز) पाकिस्तानी उर्दू शायर थे| उनका असली नाम सएद अहमद शाह (سید احمد شاہ) था. अहमद  फ़राज़ का देहांत २५ अगस्त २००८ को इस्लामाबाद में हुआ|
                                        

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