Jan 18, 2011

ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि सोगवार हो तू

ख़ुदा वो वक़्त न लाये कि सोगवार हो तू 
सुकूं की नींद तुझे भी हराम हो जाए  
तेरी मसर्रत-ए-पैहाम तमाम हो जाए 
तेरी हयात तुझे तल्ख़ जाम हो जाए 

ग़मों से आइना-ए-दिल गुदाज़ हो तेरा 
हुजूम-ए-यास से बेताब हो के रह जाए 
वफूर-ए-दर्द से सिम़ाब हो के रह जाए 
तेरा श़बाब फ़क़त ख्वाब हो के रह जाए 

गुरुर-ए-हुस्न सरापा नियाज़ हो तेरा  
तवील रातों में तू भी करार को तरसे 
तेरी निगाह किसी ग़म गुसार को तरसे 
खिज़ां रसीदां तमन्ना बहार को तरसे 

कोई जबीं न तेरे संग-ए-आस्तां पे झुके  
कि जिंस-ए-ईज-ओ-अकीदत से तुझ को शाद करे 
फरेब-ए-वादा-ए-फर्दा पे एतमाद करे 
ख़ुदा वो वक़्त न लाये के तुझ को याद आये 

वो दिल कि तेरे लिए बेक़रार अब भी है 
वो आँख जिस को तेरा इंतज़ार अब भी है 
                                                    ----- फैज़ अहमद फैज़ 

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