Jan 24, 2011

उसूलों पर जहां आंच आये टकराना जरुरी है

उसूलों पर जहां आंच आये टकराना ज़रूरी है
जो जिन्दा हों तो फ़िर जिंदा नज़र आना ज़रूरी है

नयी उम्रों की खुद-मुख्तारियों को कौन समझाए
कहाँ से बच के चलना है कहाँ जाना ज़रूरी है

थके हारे परिंदे जब बसेरे के लिए लौटे
सलीकामंद शाखों ने कहा लचक जाना ज़रूरी है

बहुत बेबाक़ आँखों में तालुक़ टिक नहीं पाता
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है

सलीका ही नहीं शायद उसे महसूस करने का
जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है

मेरे होठों पे अपनी प्यास रख दो और फ़िर सोचो
कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है
                                                          ---- वसीम बरेलवी

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