Jan 24, 2011

मिली हवाओं में उड़ने कि वो सज़ा

मिली हवाओं में उड़ने कि वो सज़ा यारों
कि मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों

वो बे-ख़याल मुसाफिर मैं रास्ता यारों
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों

मेरे कलम पे ज़माने कि गर्द ऐसी थी
के अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारों

तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था
मैं उस के घर का पता किस से पूछता यारों
                                                   ----- वसीम बरेलवी   

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