शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें कि सांस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं छुप कर
इस की आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है
----- गुलज़ार
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें कि सांस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं छुप कर
इस की आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है
----- गुलज़ार
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