Jan 22, 2011

नज़्म उलझी हुई है सीने में

नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते फिरते हैं तितलियों कि तरह
लफ्ज़ कागज़ पे बैठे ही नहीं
कब से बैठा हूँ मैं जानम
सादे कागज़ पे लिख के नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इस से बेहतर भी नज़्म क्या होगी
                                       ------ गुलज़ार

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