Jan 18, 2011

चाँद निकले किसी ज़ानिब

चाँद निकले किसी ज़ानिब तेरी ज़ेबाई का
रंग बदले किसी सूरत शब्-ए-तन्हाई का

दौलत-ए-लब से फिर आई खुस्राव-ए-शिरीन-दहान
आज रिज़ा हो कोई हर्फ़ शहंशाही का

दीदा-ओ-दिल को संभालो की सर-ए-शाम-ए-फ़िराक़
साज़-ओ-सामान बहम पहुंचना है रुसवाई का
                                                     ----- फैज़ अहमद फैज़ 

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