Jan 27, 2011

चांदनी छत पे चल रही होगी

चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी

फ़िर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
वो बर्फ सी पिघल गयी होगी

कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी

सोचता हूँ कि बंद कमरे में
इक शमा सी जल रही होगी

तेरे गहनों सी खनकती थी
बाजरे कि फसल रही होगी

जिन हवाओं ने तुझको दुलराया
उनमें मेरी ग़ज़ल रही होगी
                              ----- दुष्यंत कुमार 

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