Jan 22, 2011

इस मोड़ से जाते हैं

इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त क़दम रस्ते
कुछ तेज क़दम राहें

पत्थर कि हवेली को
शीशे के घरौंदों में
तिनकों के नशेमन तक
इस मोड़ से जाते हैं

आंधी कि तरह उड़ कर
इक राह गुज़रती है
शर्माती हुई कोई
क़दमों से उतरती है

इन रेशमी राहों में
इक राह तो वह होगी
तुम तक जो पहुँचती है
इस मोड़ से जाती है

इक दूर से आती है
पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी
रूकती है न चलती है

ये सोच के बैठी हूँ
इक राह तो वह होगी

तुम तक जो पहुँचती है 
इस मोड़ से जाती है 
                       ---- गुलज़ार 









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