इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त क़दम रस्ते
कुछ तेज क़दम राहें
पत्थर कि हवेली को
शीशे के घरौंदों में
तिनकों के नशेमन तक
इस मोड़ से जाते हैं
आंधी कि तरह उड़ कर
इक राह गुज़रती है
शर्माती हुई कोई
क़दमों से उतरती है
इन रेशमी राहों में
इक राह तो वह होगी
तुम तक जो पहुँचती है
इस मोड़ से जाती है
इक दूर से आती है
पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी
रूकती है न चलती है
ये सोच के बैठी हूँ
इक राह तो वह होगी
कुछ सुस्त क़दम रस्ते
कुछ तेज क़दम राहें
पत्थर कि हवेली को
शीशे के घरौंदों में
तिनकों के नशेमन तक
इस मोड़ से जाते हैं
आंधी कि तरह उड़ कर
इक राह गुज़रती है
शर्माती हुई कोई
क़दमों से उतरती है
इन रेशमी राहों में
इक राह तो वह होगी
तुम तक जो पहुँचती है
इस मोड़ से जाती है
इक दूर से आती है
पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी
रूकती है न चलती है
ये सोच के बैठी हूँ
इक राह तो वह होगी
तुम तक जो पहुँचती है
इस मोड़ से जाती है
---- गुलज़ार
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