Jan 22, 2011

सांस लेना भी कैसी आदत है

सांस लेना भी कैसी आदत है 
जिए जाना भी क्या रवायत है 
कोई आहट नहीं बदन में कहीं 
कोई साया नहीं है आँखों में 
पांव बेहिस हैं, चलते जाते हैं 
इक सफ़र है जो बहता रहता है 
कितने बरसों से, कितनी सदियों से 
जिए जाते हैं, जिए जाते हैं 

आदतें भी अजीब होती हैं 
                              ---- सम्पूरन सिंह "गुलज़ार' 

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